मिट जाएँगे संशय उर से
झाँकें कान्हा के नयनों में
प्रेम समंदर एक झलकता,
डूब गई थी राधा जिसमें
थाह न कोई जिसकी पाता !
अनगिन नाम दिये हैं जग ने
बाला-लाला कहा कन्हाई,
प्रीत किंतु इतनी असीम है
जाती न शब्दों में बताई !
सुख-दुख दोनों रहे किनारे
मध्य में आनंद की धारा,
राधा बनकर जो बहती है
यमुना तट पर जिसे पुकारा !
आनंद से उपजी है सृष्टि
कृष्ण वही आनंद का स्रोत,
हाथ थाम लें, उसे थमा दें
मिटेगा दोनों में हर क्षोभ !
कान्हा दिल की गहराई में
बसा हुआ मीठी धुन टेरे
कान लगा कर सुनना इसको
खिल जाएँगे तन-मन तेरे !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें