हकीकत
"हर रात सपनों से भरी थी
दिवस कोई ख़ाली कहाँ था
कहाँ पाते ओ ! रब तुझे हम
बंद जग का हर इक मकाँ था"
जाना कहाँ था, पहुँचे कहाँ हैं
दाता का दर सदा ही खुला है
भटके थे राह अब चेत आया
क्या वह मिलेगा जो था गँवाया
भूले हुए जब घर लौट आते
कहते हैं, फिर न भूले कहाते
माँ देखे पथ पिता बाट तकते
जल्दी जरा ठिकाने को लौटें
अब भी समय है इसे न गँवायें
अपनी हकीकत जानें, जतायें
सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहकीकत सहजता से समझ पाना भी साधारण जन के लिए आसान भी तो नहीं है।
सस्नेह सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपने सही कहा है, बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह!अनीता जी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंजीवन जीने की हकीकत समझाती
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
बधाई
स्वागत व आभार !
हटाएंभटके थे राह अब चेत आया
जवाब देंहटाएंक्या वह मिलेगा जो था गँवाया
भूले हुए जब घर लौट आते
कहते हैं, फिर न भूले कहाते
जब जागो तभी सवेरा.. ये सवेरा हर किसी के जीवन में आये तब न...
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन ।
यह सवेरा हर किसी के जीवन में आये, कितनी सुंदर बात कही है आपने, स्वागत व आभार !
हटाएंजब जागे तब ही सवेरा। सवेरा अपनी जगह ही राहत है। पर सुबह उठना तो पड़ेगा ! दस्तक देती रचना।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंये हकीकत जितना जल्दी समझ आए अच्छा है ...
जवाब देंहटाएंसही है,स्वागत व आभार !
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