चाह
स्वयं को केंद्र मानकर
दूसरे को चाहना
पहली मंजिल है
जो हर कोई पा लेता है
दूसरे को केंद्र मानकर
स्वयं को समर्पित कर देना
दूसरी मंज़िल है
जिसकी तलाश पूरी होने में
समय लगता है
न स्वयं, न दूसरे को
अस्तित्त्व को केंद्र मान
मुक्त हो जाना है
अंतिम सोपान
खुद से पार चला जाये जब कोई
तब सिद्ध होता है अभिप्राय
काश ! सबके जीवन में
जल्दी ही ऐसा दिन आए !
बहुत ही सुंदर और मंगल कामना है । ईश्वर यह कामना पूर्ण करे ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंsateek aur sundar rachna!! Kitne kam shabdon mein kitni gehri baat!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएं'खुद से पार चला जाये जब कोई
जवाब देंहटाएंतब सिद्ध होता है अभिप्राय' वाह! बहुत बढ़िया!
स्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंखुद से पार चला जाए जब कोई....मुश्किल है बहुत साधारण जन के लिए तो ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..!
कबीर ने भी कहा है, खाला का घर नाहीं, स्वागत व आभार शुभा जी !
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