मन
नींदों के पनघट पे
यादों को बुनता है,
ख़्वाबों के झुरमुट में
शब्द पुष्प चुनता है !
भावों की माला रच
ताल में पिरोता है,
अर्पित कर चरणों में
अश्रु में भिगोता है !
जाने क्या पाएगा
गीत रोज़ गाता है,
तारों से बात करे
चंदा संग जगता है !
किसकी वह राह तके
किसको पुकारे सदा,
शब्दों की नाव बना
मन, सागर तिरता है !
बहुत ही सुंदर गीत !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंअद्भुत भाव.., गहन सृजनशीलता.., पढ़कर मन अभिभूत हो उठा । सादर नमस्कार अनीता जी !
जवाब देंहटाएंकविता के मर्म तक पहुँच कर ही ऐसा होता है, स्वागत व आभार मीना जी !
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