शुक्रवार, फ़रवरी 21

मन

मन 


नींदों के पनघट पे 

यादों को बुनता है, 

ख़्वाबों के झुरमुट में 

शब्द पुष्प चुनता है !


भावों की माला रच 

ताल में पिरोता है, 

अर्पित कर चरणों में 

अश्रु में भिगोता है !


जाने क्या पाएगा 

गीत रोज़ गाता है, 

तारों से बात करे 

चंदा संग जगता है !


किसकी वह राह तके 

किसको पुकारे सदा, 

शब्दों की नाव बना 

मन, सागर तिरता है !


4 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत भाव.., गहन सृजनशीलता.., पढ़कर मन अभिभूत हो उठा । सादर नमस्कार अनीता जी !

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    1. कविता के मर्म तक पहुँच कर ही ऐसा होता है, स्वागत व आभार मीना जी !

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