गहराई
चेतना जुड़ती है जगत में
इससे-उससे
लोगों, विचारों
क्रिया और वस्तुओं से
शायद कुछ भरना चाहती है
नहीं जानती
भीतर अंतहीन गहराई है
जो नहीं भरी जा सकती
किसी भी शै से
इसी कोशिश में
कुछ न कुछ पकड़ लेता है मन
और जिसे पकड़ता
वह जकड़ लेता है
फिर छूटने उस जकड़न से
साधता है वैराग्य
ऐसे ही बनता है
मानव का भाग्य !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंमोह-माया से ऊपर उठकर वैराग्य भाव जो आत्मसात कर ले वही जीवन का सार समझ पाता है।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जनवरी को फरवरी पढ़िइएगा
हटाएंसादर
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंजीवन की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ! बहुत ही सुंदर और विचारपूर्ण !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंबहुत सुंदर कहा आपने
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजकड़न से छूटकर वैराग्य की प्राप्ति ही जीवन की पूर्णता है, पर यह मोह माया की जकड़न छूटती नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
संभव हो तो तो प्रयास जारी रहे, स्वागत व आभार !
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