सोमवार, नवंबर 17

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक - २

रामायण - मिथक से परे इतिहास की झलक 

(दूसरा भाग)

२५ अक्तूबर २०२५ 

आज कई दर्शनीय स्थल देखने के बाद हम त्रिंकोमल्ली पहुँचे हैं। यहाँ हमारा निवास समुद्र तट पर है। सर्वप्रथम हम नुवारा एलिया से लगभग 30 किमी उत्तर में स्थित रामबोडा स्थान पर पहुँचे, इसका शाब्दिक अर्थ है, राम की सेना या शक्ति  ।माना जाता है कि भगवान हनुमान ने सीता की खोज के दौरान इस स्थान पर विश्राम किया था। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसकी स्थापना चिन्मय मिशन द्वारा 2001 में की गई थी। मंदिर में 18 फीट ऊंची हनुमान की प्रतिमा स्थापित है और यह श्रीलंका में रामायण से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। मंदिर से कोटमाले जलाशय और आसपास की सुंदर पहाड़ियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। 

इसी परिसर में अन्नपूर्णी रेस्टोरेंट में स्वादिष्ट, शुद्ध शाकाहारी, सात्विक भोजन मिलता है। हमने यहाँ हर्बल टी का आनंद लिया। यहाँ कुछ दुकानें भी थीं, जिनमें श्रीलंका कॉफ़ी, चाय और मसाले मिलते हैं। एक किताबों की दुकान भी है, जहाँ से हमने चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित ‘रामायण इन श्रीलंका’ नामक एक सुंदर चित्रात्मक पुस्तक ख़रीदी। रामबोडा पर्वत के सामने वाला पर्वत 'रावणबोडा' पर्वत के नाम से जाना जाता है। श्रीराम और लक्ष्मण अपनी वानर सेना के साथ लंका की यात्रा करते हुए अंततः 'रामबोडा' पर्वत पर पहुँचे थे। रावण की सेना ने रावणबोडा' पर्वत पर पड़ाव डाला था। इन पर्वतों की विशेषता यह है कि यद्यपि ये आमने-सामने हैं, फिर भी एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर जाना आसान नहीं है क्योंकि यहाँ 'महावेली गंगा' नदी का एक बड़ा बेसिन है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम और रावण की सेनाओं के बीच पहला युद्ध यहीं शुरू हुआ था।रावण ने अपनी मायावी शक्ति से अपनी सेना के छिपने के लिए कई सुरंगें बनाई थीं। इस पर्वतीय क्षेत्र में रावण की सेना ने कई दिनों तक मायावी युद्ध लड़ा था।एक रोचक बात यह थी कि 'रावणबोडा' पर्वत ऐसा लग रहा था मानो हनुमान जी वहाँ सो रहे हों।


रामबोडा से हम कैंडी के लिए रवाना हुए। कैंडी श्री लंका द्वीप की प्राचीन राजधानी थी।जनसंख्या के हिसाब से यह श्रीलंका का छठा सबसे बड़ा शहर है। जब श्रीलंका पर यूरोपीय आक्रमण शुरू हुए, तो कई स्थानीय लोग इस किलेबंद शहर में आकर बस गए, जहाँ वे कई वर्षों तक हमलावरों को रोके रखने में सफल रहे।


इसके बाद हम कैंडी से लगभग बहत्तर किमी उत्तर में, श्रीलंका के मध्य भाग में स्थित दांबुला का स्वर्ण मंदिर देखने गये। बुद्ध की तीस  मीटर ऊँची स्वर्ण  की विशाल प्रतिमा एक विशेष मुद्रा में जैसे सभी को आशीष देती हुई शांत प्रतीत हो रही थी। प्रांगण में लोगों की भीड़ थी, इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दी है। यह एक प्राचीन और विशाल गुफा मंदिर परिसर है। इसे अक्सर 'दांबुला गुफा मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। श्रीलंका के सबसे बड़े इस मंदिर के परिसर में बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं पर आधारित डेढ़ सौ से भी अधिक मूर्तियाँ हैं।यहाँ दो हज़ार वर्ष  से भी पुराने भित्तिचित्र हैं। यह मंदिर बाईस शताब्दियों से अधिक समय से भिक्षुओं का निवास स्थान रहा है और बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।मंदिर के प्रांगण में स्थित केसरिया रंग में रंगी बौद्ध बिक्षुओं की सुंदर पंक्तिबद्ध मूर्तियाँ विशेष रूप से आकर्षित कर रही थीं।मंदिर दर्शन के बाद हमने यहाँ बिल्व के फूलों से बनी चाय पी, जिसे गुड़ के साथ पिया जाता है। मंदिर के गेट के पास एक वृद्ध महिला नीले कमल के पुष्प बेच रही थी।उसके श्वेत चाँदी के से केश ढलती हुई शाम के प्रकाश में चमक रहे थे। वह अपने मोबाइल में कुछ देख रही थी कि मैंने फूलों के साथ उसकी तस्वीर उतार ली।इसके बाद त्रिंकोमल्ली के लिए हमारी यात्रा का आरम्भ हुआ। लगभग ढाई घंटे के बाद हम समुद्र तट पर स्थित उस रिज़ौर्ट में पहुँच गये, जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था। समुद्र तट पर संगीत के स्वर गूंज रहे थे, हमारे कमरे से भी समुद्र दिखायी पड़ता था। 

 


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