अबोला
कितनी शांति है घर में
जब से तुमने अबोला धर लिया
है
कोई टोका-टाकी नहीं बात-बात
पर
नहीं खड़े रहते अब सिर पर
चाय, खाने के वक्त में
एक मिनट की भी देरी होने पर
अब चुपचाप स्वयं ही ले लेते
हो समझदार व्यक्ति की तरह
अब लिखने का वक्त भी मिल
जाता है और पढ़ने का भी
घर में सब धीरे-धीरे बातें
करते हैं
अब कुछ सिद्ध नहीं करना है
किसी को
जो जैसा है उसे वैसा ही
स्वीकारना है
सो स्वीकार लिया है
तुम्हारे मौन को सहज होकर
अब नहीं बढ़ती दिल की धड़कन
इस ख़ामोशी पर
क्योंकि बचाती है कितने ही
छोटे-छोटे भयों
और बेवजह की हड़बड़ी से
अब घटती हैं शामें धीरे-धीरे
अब होती हैं रातें भी सुकून
भरी
अब दौड़ नहीं लगानी पडती हर
बार तुम्हारे साथ चलने की
अब सब कुछ चल रहा है जैसे
उसे होना चाहिए सहज अपने क्रम से
तुम्हें भी अवश्य ही भा रहा
होगा यह मौन
क्योंकि जोर से कहे वे शब्द
कर जाते होंगे आहत तुम्हें भी तो
अति आग्रह से की गयी फरमाइश
या आदेश
भर जाता होगा तुम्हें भी तो
असामान्य उत्तेजना से
ईश्वर से प्रार्थना है
शांति मिले तुम्हें अपने भीतर
ताकि सीख लो कि ऐसे भी जिया
जाता है
रेल की पटरियों की तरह
समानांतर एक दूसरे के
बिना उलझे और बिना उलझाए
करते हुए सम्मान अन्य की
निजता का
कितना अच्छा हो यदि खत्म भी
हो जाये तुम्हारा अबोला
सिलसिला चलता रहे ऐसा ही घर का !