निजता में उसको पा जाये
धन कमाता चैन गंवा कर
चैन कमाता धन गंवाकर,
कैसा अद्भुत प्राणी मानव
रह जाते दोनों खाली कर !
श्वास श्वास में भर सकता था
बड़े परिश्रम से वह पाता,
सहज ही था जो मिला हुआ
दुगना श्रम कर उसे मिटाता !
खेल समझ के जीवन कोई
मोल कौडियों बेच रहा है,
मुँह लटकाए बोझ उठाये
दूजा पीड़ा झेल रहा है !
कहीं हो रही भूल है भारी
निज पैरों पर चले है आरी
तज हीरे कंकर घर लाते
करें अँधेरे की तैयारी !
भीतर जो चल रहा युद्ध है
भाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !
खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
उत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !
खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
जवाब देंहटाएंउत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !
ग्यान चक्षु खुल जाये,तो जीवन संवर जाये.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार.
खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
जवाब देंहटाएंउत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !
बहुत बढि़या ।
भीतर जो चल रहा युद्ध है
जवाब देंहटाएंभाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !
खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
उत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !
सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना
भीतर जो चल रहा युद्ध है
जवाब देंहटाएंभाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !
आखिर कब तक हम अपने आप से भागते रहेंगे?
बहुत स्वस्थ चिंतन रहता है आपका ..
जवाब देंहटाएंढूँढ रहा जो मानव जग में
जवाब देंहटाएंनिजता में उसको पा जाये !
खोजना तो भीतर ही है... बाहर तो केवल भटकाव है!
भीतर जो चल रहा युद्ध है
जवाब देंहटाएंभाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !
बहुत सुन्दर हर पंक्ति लाजवाब.....ये सबसे अच्छी लगी|
अन्दर ही झाँकना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश .. ज्ञानबोध कराती कविता अच्छी लगी..आदर सहित
जवाब देंहटाएंगहन अर्थों से सुशोभित अध्यात्म कि एक और प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक/संदेशात्मक गीत....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...