सोमवार, अक्तूबर 31

निजता में उसको पा जाये


निजता में उसको पा जाये

धन कमाता चैन गंवा कर
चैन कमाता धन गंवाकर,
कैसा अद्भुत प्राणी मानव
रह जाते दोनों खाली कर !

श्वास श्वास में भर सकता था
बड़े परिश्रम से वह पाता,
सहज ही था जो मिला हुआ
दुगना श्रम कर उसे मिटाता !

खेल समझ के जीवन कोई
मोल कौडियों बेच रहा है,
मुँह लटकाए बोझ उठाये
दूजा पीड़ा झेल रहा है !

कहीं हो रही भूल है भारी
निज पैरों पर चले है आरी
तज हीरे कंकर घर लाते
करें अँधेरे की तैयारी !

भीतर जो चल रहा युद्ध है
भाग रहा है उससे मानव,
धन, यश एक बहाना ही है
बचने का भीतर जो दानव !  

खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
उत्सव जीवन में छा जाये,
ढूँढ रहा जो मानव जग में
निजता में उसको पा जाये !


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11 टिप्‍पणियां:

  1. खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
    उत्सव जीवन में छा जाये,
    ढूँढ रहा जो मानव जग में
    निजता में उसको पा जाये !

    ग्यान चक्षु खुल जाये,तो जीवन संवर जाये.
    आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार.

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  2. खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
    उत्सव जीवन में छा जाये,
    ढूँढ रहा जो मानव जग में
    निजता में उसको पा जाये !
    बहुत बढि़या ।

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  3. भीतर जो चल रहा युद्ध है
    भाग रहा है उससे मानव,
    धन, यश एक बहाना ही है
    बचने का भीतर जो दानव !

    खुले आँख तो भ्रम मिट जाये
    उत्सव जीवन में छा जाये,
    ढूँढ रहा जो मानव जग में
    निजता में उसको पा जाये !

    सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना

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  4. भीतर जो चल रहा युद्ध है
    भाग रहा है उससे मानव,
    धन, यश एक बहाना ही है
    बचने का भीतर जो दानव !
    आखिर कब तक हम अपने आप से भागते रहेंगे?

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  5. बहुत स्‍वस्‍थ चिंतन रहता है आपका ..

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  6. ढूँढ रहा जो मानव जग में
    निजता में उसको पा जाये !

    खोजना तो भीतर ही है... बाहर तो केवल भटकाव है!

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  7. भीतर जो चल रहा युद्ध है
    भाग रहा है उससे मानव,
    धन, यश एक बहाना ही है
    बचने का भीतर जो दानव !

    बहुत सुन्दर हर पंक्ति लाजवाब.....ये सबसे अच्छी लगी|

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  8. सार्थक सन्देश .. ज्ञानबोध कराती कविता अच्छी लगी..आदर सहित

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  9. गहन अर्थों से सुशोभित अध्यात्म कि एक और प्रस्तुति

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  10. सार्थक/संदेशात्मक गीत....
    सादर बधाई...

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