शनिवार, सितंबर 15

कवयित्री अनुलता का काव्य संसार - खामोश ख़ामोशी और हम में


खामोश, ख़ामोशी और हम की अगली कवयित्री हैं भोपाल, मध्य प्रदेश की अनुलता, अनु जी रसायनशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं, रचनात्मक कार्यों के लिए परिवार जनों व मित्रों के प्रति आभार व्यक्त  करती हैं. इनकी कविताओं में मिलेजुले रंग हैं. इनके ब्लॉग का नाम my dreams 'n' expression है, जिससे हम सभी परिचित हैं तथा जुड़े हैं. इस संकलन में कवयित्री की छह कवितायें हैं.
प्यार की परिभाषा में प्यार के दो विपरीत रंग है, बीती बातें में कुछ दारुण यादें हैं, महामुक्ति में अंतर की प्रार्थना है, उड़ान में युवा वर्ग की बढ़ती हुई लालसाएं हैं, स्त्रीत्व में स्त्री मन की गहरी पुकार है और ये कविता नहीं में सत्य की तलाश है.

आज तक कोई प्यार को परिभाषित कर पाया है, सदियों से कवि कल्पना करते रहे हैं, हर कोई प्यार को अनुभव तो करता है पर निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि वह क्या है... प्यार की परिभाषा में कवयित्री जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों से प्यार को परिभाषित करती है-

तुम्हारे लिए प्यार था
जमीं से फलक तक साथ चलने का वादा
और मैं खेत की मेड़ों पर हाथ थामे चलने को
प्यार कहती रही
...
तुम सारी दुनिया की सैर करवाने को
प्यार जताना कहते
मेरे लिए तो पास के मंदिर तक जाकर
संग संग दिया जलाना प्यार था
..
शहंशाही प्यार था तुम्हारा
बेशक ताजमहल सा तोहफा देता
..
मगर मेरी चाहतें तो थीं छोटी छोटी
...
शायद पागल थी मैं  

यादें चाहे सुखद हों या दुखद लौट-लौट कर आती हैं और मन उनकी उपस्थिति को अनजाने ही दर्ज करता है, बीती बातें में अनु जी कहती हैं कि ‘जो बीत गयी सो बात गयी’ कहना जितना आसान है उसे करना उतना ही मुश्किल-

बीता बोलो
कब बीता?
जो बीता होता
तो रहता क्या मन
यूँ रीता रीता  
..
सांसों की आवाजाही में
सीने के अंदर गहराई में
पैना सा कोई
कांटा चुभता
बीता बोलो कब बीता

जीवन के पथ पर चलते हुए जब इंसान अपने ही मन के हाथों पराजित होता हुआ दीखता है, परमात्मा की ओर नजर उठती है, महामुक्ति की कामना करती हुई आहत आत्मा उसे पुकार उठती है-

हे प्रभु !
मुक्त करो मुझे  
मेरे अहंकार से
..
मुक्ति दो मुझे
जीवन की आपाधापी से
बावला कर दो मुझे
बिसरा दूँ सबको
सूझे न कोई मुझे
सिवा तेरे
..
और दे दो मुझे तुम पंख
की मैं उड़ कर
पहुंच सकूं तुम तक
..
हे प्रभु !
मन चैतन्य कर दो
मुझे अपने होने का
बोध करा दो
मुझे मुक्त कर दो

आज का युवा जल्दी से जल्दी सब कुछ पाना चाहता है, आगे बढ़ने की ललक जितनी आज दिखाई देती है, चीजें जितनी तेजी से आज बदल रही हैं, इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं था, उड़ान में अनु जी की कलम इसी विषय को उठाती है


पंछियों के हुजूम सा
आज का युवा वर्ग
...
साथ साथ हैं सब मगर
एक होड़ भी है
मौज मस्ती के नीचे
दबी छिपी सी कहीं
धक्का मुक्की
पंखो में आग लगी है
..
ये जलते परिंदे नहीं जानते
कि ऊंचाई में वहाँ उन्हें
कोई नीड़ न मिलेगा
..
नारी को सदियों से या तो देवी बनाकर पूजा गया है, या अबला मानकर उसे सताया गया है, स्त्रीत्व में इसी दुःख को व्यक्त करते हुए कवयित्री अपना अधिकार मांगती है-

आज मैं
तुमसे
अपना हक मांग रही हूँ ‘
इतने वर्षों
समर्पित रही
बिना किसी अपेक्षा के
..
अब जाकर
न जाने क्यों
मेरा स्त्री मन विद्रोही हो चला है
बेटी, भीं, बहू, पत्नी, माँ
इन सभी अधिकारों को
तुम्हें सौंप कर
एक स्त्री होने का हक
मांगती हूँ तुमसे
कहो
क्या मंजूर है ये सौदा तुम्हें !

सत्य क्या है दार्शनिक सदा से इस प्रश्न पर चिंतन करते रहे हैं, संसार में असत्य की हार होती नहीं  दिखती, सत्य पराजित होता हुआ लगता है, पर अंत में सत्य ही विजयी होता है, इसी मूल सत्य की स्थापना इस अंतिम कविता, यह कविता नहीं  में की गयी है-



कहते हैं झूठ की पुनरावृत्ति
झूठ को अक्सर
सच बना दिया करतीहै
..
मगर क्या
मान लेने से
वास्तविकता बदल जाती है
चोर चोर कह कर
किसी को गुनहगार साबित कर देते हो
..
अपमान और वेदना के
बियाबान में
भटकता ठोकरें खाता
सच्चे का स्वाभिमान
जल-जल कर
निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करता है

..
झूठ की सूली पर
चढ़कर
सत्य अपना शरीर त्याग देता है
मगर सच की आत्मा
अमर होती है
सच कभी मरता नहीं

अनु जी की कवितायें एक ओर विषय वस्तु की  विविधताओं के कारण आकर्षित करती हैं, दूसरी ओर भाषा की सहजता व प्रवाह के कारण मोह लेती हैं, इनमें दिया संदेश हृदय को स्पर्श करता है, मुझे इन कविताओं को पढ़ते व लिखते समय बहुत आनंद हुआ आशा है आप को भी ये भाएँगी.

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बहुत आभारी हूँ अनीता जी....
    अपनी कविता को आपकी नज़र देखना बहुत अच्छा लगा.....
    बहुत खुशी है कि आपने मेरी रचनाओं के लिए अपना अनमोल वक्त दिया....
    (आपका ब्लॉग फोलो भी करती हूँ...हर रचना पढ़ कर टिप्पणी भी देती हूँ मगर आपने पहचाना नहीं :-(
    सादर
    अनु
    http://allexpression.blogspot.in/

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    1. तो आप ही हैं अनुलता, मुआफ़ी चाहती हूँ, आपको तो मैं जानती हूँ, आपका ब्लॉग मैं भी पढ़ती हूँ, आज दोबारा मुलाकात हो गयी, अब ऐसी गलती नहीं होगी...

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  2. बहुत सुंदर और सटीक समीक्षा की है ....

    अनु जी को मेल कर दिया है ...

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