कौन जाने
कविता क्या है
उसका भविष्य क्या है
कौन उलझता है इन प्रश्नों में
जब की जीवन का ही पता नहीं
कौन रख गया हमें इक्कीसवीं सदी के
इस भयानक दौर में
कुछ भी तो स्पष्ट नहीं है...
जहरीला धुआँ कोयले की खदानों का
दूषित कर रहा है
निकल आता है कोई न कोई जिन
हर दूसरे दिन जाने कहाँ से...
इन जिनों के मालिक
कैसे सोते होंगे रात...
दुनिया जैसी भी है
काम चला ही लेती है
हर पीढ़ी जैसे-तैसे...
और विरासत में दे जाती है
कुछ और दर्द व पीडाएं
अपनी संतानों को...
काम चलता ही जा रहा है ... मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविचारणीय अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
संगीताजी, व अनु जी स्वागत व आभार...
जवाब देंहटाएंbahut hi vicharniy rachna ........
जवाब देंहटाएंये जीवन का चक्र ऐसे ही चलता रहता है ...
जवाब देंहटाएंजिसमें जान हो उसका बदलना तय है,और कविता में "बहुत जनों" की जान बसती हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रचना |
सादर |
गहन भाव लिए रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
संध्या जी, दिगम्बर जी, मंटू जी,व रीना जी अप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और यतार्थपरक रचना......हैट्स ऑफ इसके लिए।
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