अपनी ही छाया से अक्सर डर जाता है
भीरु उससे बढ़ कोई नजर नहीं आता है
स्वप्न पर विश्वास करे जो आँख मूंद कर
सत्य से सदा दूर-दूर भाग जाता है
जाने किस आस में दौड़ता ही जा रहा
पाँव तले क्या दबा देख नहीं पाता है
बंधन हजार बांधे रिस रहे घाव से
झूठी मुस्कान पहन खूब खिलखिलाता है
कौन बढ़े नाम करे किसका गुणगान हो
झांके यदि मानस में कोई नहीं पाता है
छाया का झूठ जब कभी नजर आये भी
मद की आड़ में उसको छुपाता है
शाहों का शाह था जाने क्यों भूल गया
कण भर ख़ुशी हित जिन्दगी लुटाता है
स्वप्न और सत्य का रास्ता अलग अलग है !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
सही कहा है आपने
जवाब देंहटाएंछाया का झूठ जब कभी नजर आये भी
जवाब देंहटाएंमद की आड़ में उसको छुपाता है
बहुत गहन और सुन्दर |