शनिवार, मार्च 1

वर्षा को भी मची है जल्दी

वर्षा को भी मची है जल्दी


टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
ले आतीं संदेश प्रीत के,
धरा हुलसती हरियाली पा
खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !

शिशिर अभी तो गया नहीं है
 रुत वसंत आने को है,
मेघों का क्या काम अभी से
 फागुन माह चढ़ा भर है !

वर्षा को भी मची है जल्दी
उधर फूल खिलने को आतुर,
मोर शीत में खड़े कांपते
 अभी नहीं जगे हैं दादुर !

मानव का ही आमन्त्रण है
उथल-पथल जो मची गगन में,
बेमौसम ही शाक उगाता
बिन मौसम फल-फूल चमन में !


5 टिप्‍पणियां:


  1. सुन्दर गीत राग लिए लय ताल अर्थ छटा लिए :

    टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
    ले आतीं संदेश प्रीत के,
    धरा हुलसती हरियाली पा
    खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !

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  2. ओंकार जी, शिल्पा जी, वीरू भाई व राजीव जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  3. बिन मौसम की बरसात पर लिखा बढ़िया गीत |

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  4. जब सब भागे जा रहे हैं तो वर्षा पीछे क्यों ? सुन्दर रचना..

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