मंगलवार, मार्च 31

लौट-लौट आती है प्रतिध्वनि

लौट-लौट आती है प्रतिध्वनि


हर पुकार सुनी जाती है
लौट-लौट आती है प्रतिध्वनि
हर मनुहार चुनी जाती है !

यूँ ही तो नहीं गगन सज रहा
तारों से रात्रि मंडित है,
नव रंगों से उषा निखरती
धरा पादपों से सज्जित है !

रोज बहार खिली आती है
स्वागत करने उस प्रियतम का
बन उपहार चली आती है !

मेघ उमड़ते अमृत जल से
करने धरती का अभिनन्दन,
शस्य श्यामला धरा विहंसती
पुष्प कर रहे जैसे वन्दन !

नित इक धार बही आती है
दे जाती संदेशे उसके
कई आकार धरे जाती है !



6 टिप्‍पणियां:

  1. नित इक धार बही आती है
    दे जाती संदेशे उसके
    कई आकार धरे जाती है !
    ...बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...

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  2. कविता की आत्मा भी मनोरम और और उसकी संरचना भी. अच्छा लग पढ़कर.

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  3. भावपूर्ण बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...

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  4. महेश्वरी जी, देवेन्द्र जी, प्रतिभा जी, कैलाश जी, निहार जी, ओंकार जी स्वागत व आभार

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