आहट भर पाकर मधु रुत की
बासंती चुनरिया ओढ़े
हौले हौले से धरती पग,
सरकाती पल भर ही घूँघट
विस्मय से भर जाता है जग !
आहट भर पाकर मधु रुत की
कवि मुग्ध हुए रचते दोहे,
मधुबन की अनुपम सौगातें
आखिर किसका न मन मोहे !
नित नूतन भाव उठें उर में
नव पल्लव गीत यही गाते,
तज अनचाहा फिर-फिर जन्में
नव कोंपल यही सिखा जाते !
इक धनक गूँजती कण-कण में
गीतों की जैसे फसल उगे,
मधुमास मदिर पैमाने भर
मुदित हुआ हर भोर जगे !
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मधुमास का मन-भावन स्वागत गान !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंSundar !
जवाब देंहटाएंsaveraa, saveraa, nayaa din sunehera.. :)
जवाब देंहटाएंnice one..
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बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति अनीता जी
जवाब देंहटाएंआज कई दिनों ब्लॉग पोस्ट करने का मौका मिला
आपका स्वागत है ब्लॉग पर
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं : )
हर और यही आलम है...मन मुग्ध किये जाता है...जैसे यह कविता.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार निहार जी
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