धरा गा रही ॐ गीत में
उसका ही संदेश सुनाते
पंछी जाने क्या कह जाते,
प्रीत भरे अपने अंतर में
वारि भरे मेघ घिर जाते !
मूक हुए तरु झुक जाते जब
उन चरणों में फूल चढ़ाते,
हवा जरा हिचकोले देती
झूमझूम कर नृत्य दिखाते !
तिलक लगाता रोज भाल में
रवि भी मुग्ध हुआ प्रीत में,
चन्द्र आरती थाल सजाता
धरा गा रही ॐ गीत में !
कण-कण करता है अभिनन्दन
अनल, अनिल, भू, नीर, गगन
दिशा –दिशा में वही बसा है
पग-पग
पर उसके ही चरण !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज '
जवाब देंहटाएंतुलसी की दिव्य दृष्टि, विनम्रता और उक्ति वैचित्र्य ; चर्चा मंच 1914
पर भी है ।
बहुत बहुत आभार रविकर जी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार..अमृता जी
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