मंगलवार, जनवरी 5

नये वर्ष में

नये वर्ष में

...क्यों न प्रवेश करें नये आयामों में
पुराने वक्तों को उतार फेंके
ज्यों केंचुल उतार देता है सर्प !
जो किया है अब तक, अगर वही दोहराया
तो क्या खाक नया साल मनाया !
उतार फेंके चश्मा अपनी आँखों से
दुनिया को नये ढंग से निहारें,
क्या चाहता है वह खुदा हमसे
दिल से पूछें, उसे शिद्दत से पुकारें !  
चुभते हैं जो सवाल भीतर
बैठ आराम से उनके हल खोजें,
सहते हैं जो ख्वाब नयनों में
उन्हें साकार करने के नये अंदाज खोजें !
आदमी होकर आये थे जहाँ में
आदमियत की परिभाषा सीखें,
 दी हैं इस कुदरत ने हजार नेमतें
उनका शुक्रगुजार होना सीखें !
नया वर्ष क्या यही कहने
नहीं चला आता बार-बार,
न दोहराएँ वे भूलें
जो की थीं पिछली बार !


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और कमलेश्वर में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. आदमी होकर आये थे जहाँ में
    आदमियत की परिभाषा सीखें,
    ...आज के समय की सबसे बड़ी ज़रुरत..बहुत सार्थक प्रस्तुति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. स्वागत व आभार कैलाश जी..

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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