गुरुवार, सितंबर 15

भोर नयी थामे जब अंगुली

भोर नयी थामे जब अंगुली

महक रहा कण-कण सृष्टि का
अनजानी सी गंध बहे है,
गुंजित गान सुरीले निशदिन
जाने किससे कौन कहे है !

पलकों में तंद्रा भर जाता
स्वप्न दिखा ताजा कर जाता,
भोर नयी थामे जब अंगुली
नये मार्ग हर रोज सुझाता !

रचे रास अदृश्य कन्हाई
तन का पोर-पोर हुलसाता,
झांक रहा नीले नयनों से
साँझी प्रीत उड़ेंले जाता !  

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