भोर नयी थामे जब अंगुली
महक
रहा कण-कण सृष्टि का
अनजानी
सी गंध बहे है,
गुंजित
गान सुरीले निशदिन
जाने
किससे कौन कहे है !
पलकों
में तंद्रा भर जाता
स्वप्न
दिखा ताजा कर जाता,
भोर
नयी थामे जब अंगुली
नये
मार्ग हर रोज सुझाता !
रचे
रास अदृश्य कन्हाई
तन
का पोर-पोर हुलसाता,
झांक
रहा नीले नयनों से
साँझी
प्रीत उड़ेंले जाता !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें