शून्य और पूर्ण 
 तज देता है पात
शिशिर में पेड़
ठूंठ सा खड़ा होने
की ताकत रखता है
 अर्पित करे निज आहुति 
सृष्टि महायज्ञ
में 
नुकीली चुभन शीत
की सहता है
भर जाता कोमल
कोंपलों औ’ नव पल्लवों से 
 बसंत में वही खिल उठता है
त्याग देता घरबार
सन्यासी 
स्वागत करने को
हर द्वार आतुर होता है 
पतझड़ के बाद ही
आता है बसंत 
समर्पण के बाद ही
मिलता है अनंत 
शून्य हो सका जो
वह पूर्ण बनता है
हीरा ही वर्षों
माटी में सनता है !

 
बहुत खूब ,मंगलकामनाएं आपकी कलम को !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार लोकेश जी !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सतीश जी !
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