बुधवार, फ़रवरी 14

इश्क की दास्ताँ





इश्क की दास्ताँ


उसने दिए थे हीरे हम कौड़ियाँ समझ के
जब नींद से जगाया रहे करवटें बदलते

ओढ़ा हुआ था तम का इक आवरण घना सा
माना  स्वयं  को घट इक जो ज्ञान से बना था

गीतों में प्रेम खोजा झाँका न दिल के भीतर
दरिया कई बसे थे बहता था इक समुन्दर

गहराइयों में दिल की इक रोशनी सदा है
उतरा नहीं जो डर से उस शख्स से जुदा है 

तनहा नहीं किसी को रखता जहाँ का मालिक
हर दिल में जाके पहले वह आप ही बसा है

जिस इश्क के तराने गाते हैं लोग मुस्का
मरके ही मिलता सांचा उस इश्क का पता 

उस एक का हुआ जो हर दिल का हाल जाने
सबको लगन है किसकी यह राज वही जाने

11 टिप्‍पणियां:

  1. तनहा नहीं किसी को रखता जहाँ का मालिक
    हर दिल में जाके पहले वह आप ही बसा है----- वाह! बहुत खूब!!!!

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  2. लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  3. स्वागत व आभार ज्योति जी !

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  4. हर दिल में वही बसा है पर उस प्रेम को हर कोई देख नहीं पाता ... भावपूर्ण ...

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  5. गहराइयों में दिल की इक रोशनी सदा है
    उतरा नहीं जो डर से उस शख्स से जुदा है
    प्रेम को हर कोई देख नहीं पाता ... भावपूर्ण

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