बुधवार, फ़रवरी 21

फागुन झोली भरे आ रहा




फागुन झोली भरे आ रहा


सुनो ! गान पंछी मिल गाते
मदिर पवन डोला करती है,
फागुन झोली भरे आ रहा
कुदरत खिल इंगित करती है !

सुर्ख पलाश गुलाबी कंचन
बौराये से आम्र कुञ्ज हैं,
कलरव निशदिन गूँजा करता
फूलों पर तितली के दल हैं !

टूटा मौन शिशिर का जैसे
एक रागिनी सी हर उर में,
मदमाता मौसम छाया है
सुरभि उड़ी सी भू अम्बर में !

नव ऊर्जित भू कण-कण दमके
हलचल, कम्पन हुआ गगन में,
पवन चले फगुनाई सस्वर
मधुरनाद गुंजित तन-मन में !

भीनी-भीनी गंध नशीली
नासापुट में महक भर रही,
रंगबिरंगे कुसुमों से नित
वसुंधरा नित राग रच रही !


11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2889 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. बहुत खूब !मंगलकामनाएं आपको

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  3. बहुत ही सुंदर कविता...फूलों पर तितली के दल हैं...

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  4. स्वागत व आभार किरमानी जी !

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  5. फागुन की रूत छा गयी वातावरण में जैसे ...
    शब्दों का जाल महक ले आया मौसम में ...

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  6. क्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना

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