सोमवार, फ़रवरी 12

‘कुछ’ न होने में ही सुख है





‘कुछ’ न होने में ही सुख है 


‘कुछ’ होने की जिद में अकड़ा
फिर-फिर दुःख को कर में पकड़ा,
इक उलझन में हरदम जकड़ा
 क्यों न हो दिल टुकड़ा-टुकड़ा !

कुछ होकर भी देख लिया है
कुछ भी जैसे नहीं किया है,  
तृषित अधर सागर पिया है
 दिल का दामन नहीं सिया है !

‘कुछ’ ना होने में ही सुख है
मिट जाता जन्मों का दुःख है,
मुड़ा जिधर समीर का रुख है
सब उसका जो अंतर्मुख है !

सब कुछ ही हो जाना होगा
भेद हरेक मिटाना होगा,
लब पर यही तराना होगा
दिल तो वहीं लगाना होगा !

3 टिप्‍पणियां:

  1. गजब लिखा है अनीता जी...सच में ये हममें से अधिंकांश का हाल है कि...
    तृषित अधर सागर पिया है
    दिल का दामन नहीं सिया है___

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    1. स्वागत व आभार अलकनंदा जी ! तृष्णा तो एक उसी के दीदार से मिटती है..फिर जीवन उत्सव बन जाता है

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  2. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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