शनिवार, मार्च 17

भीतर एक स्वप्न पलता है




भीतर एक स्वप्न पलता है



आहिस्ता से धरो कदम तुम
हौले-हौले से ही डोलो,
कंप न जाये कोमल है वह
वाणी को भी पहले तोलो !

कुम्हला जाता लघु पीड़ा से
हर संशय बोझिल कर जाता,
भृकुटी पर सलवट छोटी सी
उसका आँचल सिकुड़ा जाता !

सह ना पाए मिथ्या कण भर
सच के धागों का तन उसका,  
मुरझायेगा भेद देख कर
सदा एक रस है मन जिसका !

हल्का सा भी धुआं उठा तो
दूर अतल में छिप जायेगा,  
रेखा अल्प कालिमा की भी
कैसे उसे झेल पायेगा !

कोमल श्यामल अति शोभन जो
भीतर एक स्वप्न पलता है,
बड़े जतन से पाला जिसको
ख्वाब दीप बन कर जलता है !

4 टिप्‍पणियां:

  1. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. सम्भालना होता है नाज़ुक स्वप्न को ... सच कहा आही कोमल होता है और धीरे धीरे संभाल कर इसको पूर्ण करना चाहिए ... मेहनत और आशा के सहारे ...
    सुंदर रचना ...

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