प्रतीक्षा
नहीं, अब कुछ भी नहीं रुचता
न ही बादलों का शोर
न नाचता हुआ मोर
न वर्षा का बरसता हुआ जल
न झरनों की कलकल
न पंछियों की टीवी टुट्
लुभाती है
न ही रुत सावन की भाती है
अब तो उस श्याम की
प्रतीक्षा है
जो इन घनघोर घटाओं से भी
काला है
जो इन हवाओं से भी मतवाला
है !
गजब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रोहितास जी !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3093 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वराह जयन्ती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंवह श्याम आस-पास ही है .कभी जब कुछ देख कर मन पुलक उठता है तो लगता है वह यहीं है -हमारे साथ .
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने प्रतिभा जी, वह श्याम तो हमारे आसपास ही है, हम ही अपने विचारों में मग्न उसे देख नहीं पाते
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंवो श्याम रहता है सदेव साथ ही .... शायद श्याम रंग में नज़र नहीं आता ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संजय जी !
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