बुधवार, जुलाई 10

तुम जाओ खिल


यह कविता उन सभी माँओं के नाम समर्पित है जिनके प्रथम पुत्र का इस माह जन्मदिन है 
तुम जाओ खिल 


जब अकेलापन खले था
समय भी काटे न कटता
दूर अपनों से बनाया
नीड़ भी कोमल अभी था
प्रेम से पहचान भी न थी पुरानी
घर नया, साथी नया था
स्वप्न तब देखा तुम्हारा
एक जीती जागती कविता से तुम
आ गये नव रंग भरने जिंदगी में
गूँजती किलकारियां, रोने के स्वर
गोद में फिर ले तुम्हें जागे पहर
आज भी सब याद है वह खिलखिलाना
जरा सी फटकार पर आँसू बहाना
आज फिर वही तिथि आयी
बारिशों के मध्य आती दस जुलाई
हो सबल, सुखमय बनी जीवन डगर
साथ देने को है प्यारी हमसफर
भाव मन में सदा देने का ही रखना
रात जल्दी सो सुबह जल्दी ही जगना
सीख बस इतनी सी देते हम तुम्हें
दी हैं हजारों नेमतें तुमने हमें
सत्य के पथ के सदा राही बनो
स्वयं को अच्छी तरह से जान लो
ये दुआएं दे रहा है आज दिल
कमल जैसे जगत में तुम जाओ खिल

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3393 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति, अंतर तक हिलैर भरती । आपको एवं आपके हृदि को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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