ढाई आखर जिसने बांचे
ढाई आखर जिसने बाँचे
अंतर पिघल-पिघल बह जाये,
अधरों पर स्मित नयन मद भरे
एक रहस्य मधुर बन जाये !
कदमों में मीरा की थिरकन
कानों में कान्हा मुरली धुन,
यादें पनघट बनी डोलतीं
घटता पी से मिलन प्रतिक्षण !
मानस के उत्तंग शिखर से
भावों की इक नदी उतरती
कण-कण उर का डूबे जिसमें
धुली-धुली मनकाया हँसती !
खो जाता ज्यों नीलगगन में
हंस अकेला उड़ता कोई,
अंतर सागर में मिल जाता
तृप्त हुआ दीवाना सोई !
ढाई आख़र
जवाब देंहटाएंजिसने बांच लिया वो दीवाना पागल हो ही जाता है।
बाकमाल रचना।
आइयेगा- प्रार्थना