रविवार, सितंबर 13

पंत


 पंत

प्रकृति के, सुकुमार कवि 

घुंघराले केश सजे आनन पर, 

वाणी मधुर, कोमल छवि 

कविता फूटी स्वतः झर-झर !

प्रकृति के सुंदर चितेरे 

नामकरण स्वयं का किया, 

फूलों, वृक्षों से गहरे नाते  

बचपन से ही काव्य रचा !

घर में छोटे, बड़े दुलारे 

सुंदर वस्त्रों का आकर्षण, 

किन्तु सदा वैरागी था मन

साधु-सन्तों का संग किया 

घँटों ध्यान साधना करते, 

उस अखण्ड अविनाशी से व

लौ लगाई उसके जग से 

जिसने जो माँगा, सहर्ष दिया 

भिक्षु हो या मित्र, संबन्धी 

अपना हो या दूर का परिचित, 

कभी भेद न करते तिलभर 

बापू को आराध्य बनाया 

अरविन्द से मिली शांति चिरन्तन, 

महादेवी, निराला, दिनकर का

 साथ मिला, मित्र थे बच्चन !

कला-विज्ञान, मेल हो कैसे 

करते रहे सदा समन्वय, 

अकुलाया था अंतर, लख कर

ग्रामीणों का जीवन दुखमय !

स्त्री रूप में लख प्रकृति को 

नारी को सम्मान दिया, 

रूप-भाव दोनों का ही 

उर अंतर से अनुभव किया  ! 


9 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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  2. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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  3. महाकवि पन्त जी पर बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  4. हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

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