नीला अम्बर सदा वहीं था
संशय, भ्रम, भय, दुःख के बादल
जग को हमने जैसा देखा,
छिपा लिया था दृष्टि पथ ही
मन पर पड़ी हुई थी रेखा !
कैसे दिखे विमल नभ अम्बर
आशाओं की ओट पड़ी हो,
कैसे कल-कल निर्मल सरिता
भेदभाव की भीत गड़ी हो !
दुराग्रहों के मोटे पर्दे
नयनों को करते हों धूमिल,
नीला अम्बर सदा वहीं था
जहां छँटे ये काले बादल !
स्रोत खुले जो बंद पड़े थे
जहाँ गिरी मन से हर बाधा,
बहते हुए प्रीत के दरिया
श्यामल जीवन में थी राधा !
अपनेपन की फसल उगी थी
दृष्टि मिली यह राज बहा झर,
जाना, आकर जाने कितने
बन्द पड़े हैं मन के भीतर !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-9 -2020 ) को "काँधे पर हल धरे किसान"(चर्चा अंक-3832) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
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