शुक्रवार, सितंबर 4

अमर स्पर्श


अमर स्पर्श 

गतांक से आगे

आस्था और समर्पण के चरम क्षणों में कवि को अस्तित्त्व और स्वयं के मध्य जैसे कोई भेद जान नहीं पड़ता, जगत का स्वप्नवत रूप उसे प्रकट होता है और वह कह उठता है -

ओ अंतरमयि,

तुम्हारा करुणा कर ही

ध्यान बन कर

गति हीन गति से

मुझे खींचता है ।


अपने स्थान पर

मैं तुम्हें पाता हूँ ।


मन के मौन श्रृंगों पर

सुनहले क्षितिज

नव सूर्योदय की प्रतीक्षा में हैं ।


शुभ्र

अवाक्

आत्मोदय की ।

ओ विराट, चैतन्य

यह मैं क्या देखता हूँ


कि घर बाग पेड़

और मनुष्य

किसी अदृश्य पट में

चित्रित भर हैं ।

ये वास्तविक सत्य नहीं,

मोम के पुतले भर हैं ।’’


जीवन के जिन मूलभूत प्रश्नों का हल मानव सदा से खोजता रहा है, कवि पंत ने कितनी सरलता से श्रद्धा और भक्ति के भावों में उन्हें व्यक्त कर दिया है -


क्यों रहे न जीवन में सुख-दुख

क्यों जन्म-मृत्यु से चित्त विमुख?

तुम रहो दृगों के जो सम्मुख

प्रिय हो मुझको भ्रम, भय, संशय !


तन में आएँ शैशव यौवन

मन में हों विरह मिलन के व्रण,

युग स्थितियों से प्रेरित जीवन

उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!


जो नित्य अनित्य जगत का क्रम

वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,

हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,

जग से परिचय, तुमसे परिणय !


तुम सुंदर से बन अति सुंदर

आओ अंतर में अंतरतर,

तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर

वरदान, पराजय हो निश्चय !


कवि के जीवन और काव्य कर्म के बारे में जानने की इच्छा स्वाभाविक थी. ज्ञात हुआ, जन्म के कुछ घण्टे बाद ही माँ का साया उनके सिर से उठ गया था. दादी ने उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया.सबसे छोटे होने के कारण परिवार में सभी का स्नेह मिला किन्तु माँ के प्रेम का अभाव उन्हें प्रकृति के सान्निध्य में ले गया. सलेटी छतों वाले पहाड़ी घर, आंगन के सामने आडू, खुबानी के पेड़, पक्षियों का कलरव, सर्पिल पगडण्डियां, बांज, बुरांश व चीड़ के पेड़ों की बयार व नीचे दूर दूर तक मखमली कालीन सी पसरी कत्यूर घाटी व उसके ऊपर हिमालय  के उत्तंग शिखरों और दादी से सुनी कहानियों  व शाम के समय सुनायी देने वाली आरती की स्वर लहरियों ने इस बालक को बचपन से ही कवि हृदय बना दिया था।

क्रमशः

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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