कुछ ख्याल
हजार राहे हैं जिनसे गुजर के तू मिलता है
किसी बाग में कमल कभी गुलाब बना खिलता है
किसी बाग में कमल कभी गुलाब बना खिलता है
हरेक मुट्ठी में कैद है एक आसमां अपना
जब जो ख्वाहिश करेगा चाँद उस पल निकलता है
जब जो ख्वाहिश करेगा चाँद उस पल निकलता है
एक रस्ता पकड़ ले और चलता चले उसी पर
क्यों निगाहों को बिखेरे दिलेदर्द पिघलता है
क्यों निगाहों को बिखेरे दिलेदर्द पिघलता है
हजार नदियां गुजर कर जहाँ भी पहुँचें
समंदर एक ही हरेक को मिलता है
समंदर एक ही हरेक को मिलता है
क्यों कशमकश में दिनों तक लम्हे गुजरते हैं
वक्त के पार ही वह जांनिसार मिलता है
वक्त के पार ही वह जांनिसार मिलता है
थम जाये मन की दौड़ जिस पल किसी की कहीं
खुले वह द्वार जो उसके दर पे निकलता है
खुले वह द्वार जो उसके दर पे निकलता है
गौर से देखा है कभी मन को समझा भी
इन्हीं के पानियों में उसका कमल खिलता है
इन्हीं के पानियों में उसका कमल खिलता है
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंक्यों कशमकश में दिनों तक लम्हे गुजरते हैं
जवाब देंहटाएंवक्त के पार ही वह जांनिसार मिलता है
बहुत ख़ूब.... दिल की गहराई को दस्तक देता शेर
बधाई 🙏
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सार्थक।
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
बहुत सार्थक ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सुन्दर, हृदयग्राही प्रस्तुति!
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