आहट
अनजाने रस्तों
से
कोई आहट आती है
बुलाती है
सहलाती सी लगती
कौतूहल से भर
जाती है
जाने किस लोक
से
भर जाती आलोक
से
मुदित बन जाती
है
सुधियाँ जगाती
कौन जाने है
किसकी
आँख पर रहे
ठिठकी
शायद कुछ राज
खुले
स्वयं न बताती
फिजाओं में घुल
जाती है
सुनी सी पर
अजानी भी
भेद क्यों न
खोलती
जाने क्या कहती
वह
क्या गीत गुनगुनाती है
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 27-11-2020) को "लहरों के साथ रहे कोई ।" (चर्चा अंक- 3898) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुना्दर गद्यगीत।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआहट कभी रहस्यमयी लगती है तो कभी परिचित सी भी।
जवाब देंहटाएंकविता के मर्म को समझकर सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर सृजन के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंयदि उस आहट को कोई एक बार पहचान ले तो भेद खुल सा जाता है । तब परम घटना घट जाती है । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंजाने इतने अनजाने भाव, स्वप्न और कृत्य मन में भर जाति है ये आहट ...
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