शनिवार, मई 22

पूर्ण भीतर पल रहा है

पूर्ण भीतर पल रहा है 


ज्योति जिसकी शांत कोमल 

चाँदनी सी बिछी पथ में, 

सब तरफ बिखरा उजाला 

एक दीपक जल रहा है !


जगत का मंगल सदा ही 

मांगता, वह ज्ञान देता, 

एक उस का ही पसारा

पीर मन की हर रहा है !


 प्रकटे वही हर शब्द से 

 मूल कारण शब्द का जो 

गड़ी गहरी पीर उर में 

गाँठ हर वह खोलता है !


कसक कुछ न कर सके   

हर अधूरी चाह मन की, 

दूर ले जाती उसी से 

पूर्ण भीतर पल रहा है !


 मन समर्पित हो सके तो 

ढाल बन कर दे सहारा,

सौंप दें हर चाह उसको 

रस सुरीला घोलता है ! 




 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बस ये दीपक जलता रहे । और शांति मन में घोलता रहे ।
    🙏🙏🙏

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  2. वही आस का दीपक मन सुदृढ़ करता है !!बहुत सुन्दर !!

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. संगीता जी, अनुपमा जी, सन्दीप जी, ओंकार जी व मीना जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. भीतर पालने वाला पूर्ण ही हमें सही राह पर चलने को प्रेरित करता है।

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  6. ये एक दीपक ही काफी उजल फैलाने में सक्षम है, बस बुझे नहीं ।

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  7. मन में प्रकाश रहे तो राह स्वयं स्वयं को दिखाता है ...

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