बुधवार, अक्तूबर 13

अहंकार छाया है

अहंकार छाया है


इच्छा जब सिमट गयी  

 खुद का भान हुआ,  

 करने की फ़ांस मिटी 

दीप जल ध्यान का !


वहीं समाधान मिला 

जीवन सवाल का, 

स्वयं की ही खोज थी 

बेबूझ बात का !


अधरों पर स्मित जागा 

अंतर  चैन बहा, 

किस भ्रम में खोया मन 

क्यों यह खेल सहा !


मन ही तो माया है 

राज यह खुल गया, 

अहंकार छाया है 

भय का सबब मिटा !


12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
    'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  3. इच्छा जब सिमट गयी
    खुद का भान हुआ,
    करने की फ़ांस मिटी
    दीप जल ध्यान का !
    काबिले तारीफ रचना!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!बेहतरीन सृजन अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सही, सब मन की ही माया है झुठी या सच्ची।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  6. ��मनन करके दिल में बसा लेने वाली कविता

    जवाब देंहटाएं
  7. "मन ही तो माया है...
    अहंकार छाया है।"
    खूबसरत अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं