अहंकार छाया है
अहंकार छाया है
इच्छा जब सिमट गयी
खुद का भान हुआ,
करने की फ़ांस मिटी
दीप जल ध्यान का !
वहीं समाधान मिला
जीवन सवाल का,
स्वयं की ही खोज थी
बेबूझ बात का !
अधरों पर स्मित जागा
अंतर चैन बहा,
किस भ्रम में खोया मन
क्यों यह खेल सहा !
मन ही तो माया है
राज यह खुल गया,
अहंकार छाया है
भय का सबब मिटा !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
इच्छा जब सिमट गयी
जवाब देंहटाएंखुद का भान हुआ,
करने की फ़ांस मिटी
दीप जल ध्यान का !
काबिले तारीफ रचना!
स्वागत व आभार!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह!बेहतरीन सृजन अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सही, सब मन की ही माया है झुठी या सच्ची।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
��मनन करके दिल में बसा लेने वाली कविता
जवाब देंहटाएं"मन ही तो माया है...
जवाब देंहटाएंअहंकार छाया है।"
खूबसरत अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर रचना।
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