पंछी, तुम और वसंत
मदमाता वसंत ज्यों आया
कुदरत फिर से नयी हो गयी,
मधु के स्रोत फूट पड़ने को
नव पल्लव नव कुसुम पा गयी !
भँवरे, तितली, पंछी, पौधे
हुए बावरे सब अंतर में,
कुछ रचने जग को देने कुछ
आतुर सब महकें वसंत में !
याद तुम्हें वह छोटी चिड़िया
नीड़ बनाने जो आयी थी,
संग सहचर चंचु प्रहार कर
छिद्र तने में कर पाई थी !
वृत्ताकार गढ़ते घोंसला
हांफ-हांफ कर श्रम सीकर से,
बारी-बारी भरे चोंच में
छीलन बाहर उड़ा रहे थे !
आज पुनः निहारा दोनों को
स्मृतियाँ कुछ जागीं अंतर में,
कैसे मैंने ली तस्वीर
प्रेरित कैसे किया तुम्हीं ने !
देखा करतीं थी खिड़की से
क्रीडा कौतुक उस पंछी का,
मित्र तुम्हारा’ आया देखो
कहकर देती मुझको उकसा !
कैद कैमरे में वह पंछी
नीली गर्दन हरी पांख थी,
तुमने मनस नयन से देखा
लेंस के पीछे यह आँख थी !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०२ -२०२२ ) को
'तुझ में रब दिखता है'(चर्चा अंक -४३३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंवाह , खूब बसंत छाया । सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार आपका !!
हटाएंवाह, बहुत मार्मिक वर्णन बसंत ऋतु के आगमन का, बहुत-बहुत बधाई बसंत पंचमी की 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार हरीश जी!
हटाएंवाह! बसंत का बहुत ही खूबसूरत वर्णन!
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं💐
स्वागत है मनीषा जी, आपको भी बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!
हटाएंJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
जवाब देंहटाएंPub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंमधुर स्मृतियों से सुसज्जित मनोरम शब्द चित्र प्रिय अनीता जी 👌🙏
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