ऋतु मदमाती आई पावन
महुआ टपके रसधार बहे
गेंदा गमके प्रसून उगे,
महके सरसों गुंजार उठे
घट-घट में सोया प्यार जगे !
ऋतु मदमाती आई पावन
झंकृत हो तेरा-मेरा मन,
बिखराई रंगों ने सरगम
संगीत बहा उपवन-उपवन !
जागे पनघट जल भी चंचल
है पवन नशीली हँसा कमल,
भू लुटा रही अनमोल कोष
रवि ने पाया फिर खोया बल !
जीवन निखरा नव रूप धरा
किरणों ने नूतन रंग भरा,
सूने मन का हर ताप गया,
हो मिलन, उठा अवगुंठ जरा !
ऋतुराज का स्वागत है
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंमदमाया प्राण।
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