हम ईश्वर से कहते हैं कि अपना सब कुछ तुझे सौंपते हैं पर ईश्वर, वह क्या कहता है, क्या उसने सब कुछ मानव को नहीं दे दिया है।
सब कुछ सौंप दिया है तुझको
तेरी ख़ातिर ही तो मैं हूँ
व्यर्थ ही तू फ़िक्र में डूबा,
उर अंतर श्रद्धा से भर ले
अप्राप्य रहेगा कुछ भी ना
संग सदा सहज डोलेंगे
उलझन में तू क्यों भ्रमता है,
मन जो गोकुल बन सकता था
क्यों उदास सा नभ तकता है !
तू है मेरा प्रियतम अर्जुन !
वंचित क्यों है परम प्रेम से,
क्या जग में जो पा न सके तू
जग चलता है अमर प्रेम से !
सब कुछ सौंप दिया है तुझको
अगन, पवन, जल और धरा में,
किस आकर्षण ने बाँधा है
डोले सुख-दुःख, मरण-जरा में !
करुणा सदा बरसती सब पर
बस तू मन को पात्र बना ले,
जीवन बन जायेगा मंदिर
दिवस-रात्रि का गान बना ले !
यही तो माया है ... किसने किसको क्या कब दिया ... मैंने मुझको दिया, इश्वर ने, मैंने, ... शायद सब माया है ...
जवाब देंहटाएंमाया के पार ही मिलता है मायापति
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4344 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी आमद का इंतजार रहेगा|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार!
हटाएंकरुणा सदा बरसती सब पर
जवाब देंहटाएंबस तू मन को पात्र बना ले,
जीवन बन जायेगा मंदिर
दिवस-रात्रि का गान बना ले !... बहुत ही सुंदर।
सादर
स्वागत व आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंतेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ---
स्वागत व आभार!
हटाएंजीवन का सबसे बङा लक्ष्य
जवाब देंहटाएंया उपलब्धि कहिए,
एक ही है,
सुपात्र बन पाना ।
-/\-
सही है, आभार!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआशा और विश्वास से परिपूर्ण सुंदर सृजन।
बहुत खूबसूरती से दिया गीता ज्ञान ।
जवाब देंहटाएंसुशील जी, कुसुम जी और संगीता जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर कहा।
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