सदगुरु दोनों हाथ लुटाता
खुद से बढ़कर कुछ भी जग में
पाने योग्य नहीं है, कहता,
उसी एक को पहले पालो
सदगुरु दोनों हाथ लुटाता !
जग में होकर नहीं जगत में
सोये जागे वह तो रब में,
उसके भीतर ज्योति जली है
देखे वह सबके अंतर में !
भीतर का संगीत जगाता
खोई सी निज याद दिलाता,
जन्मों का जो सफर चल रहा
उसकी मंजिल पर ले जाता !
लूट मची है राम नाम की
निशदिन उसकी हाट सजी है,
झोली भर-भर लायें हम घर
उसको कोई कमी नहीं है !
ऐसा परम स्नेही न दूजा
अनुपम उसका द्वार खुला है,
बिगड़ी जन्मों की संवारें
सुंदर अवसर आज मिला है !
गुरु पूर्णिमा पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित
वाह गुरुकृपा मिल जाये तो सब मिल जाता है !!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुपमा जी!
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4490 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंआभार
खुद से बढ़कर कुछ भी जग में
जवाब देंहटाएंपाने योग्य नहीं है, कहता,
उसी एक को पहले पालो
सदगुरु दोनों हाथ लुटाता !
..इन पंक्तियों में गुरु की महत्ता का उत्कृष्ट वर्णन किया है आपने दीदी । सुंदर रचना ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंऐसा परम स्नेही न दूजा
जवाब देंहटाएंअनुपम उसका द्वार खुला है,
बिगड़ी जन्मों की संवारें
सुंदर अवसर आज मिला है !
गुरु कृपा की बहुत ही सुन्दर व्याख्या करती लाजवाब सृजन, गुरु कृपा सब पर बनी रहे 🙏
गुरु की महत्ता का लाजवाब वर्णन
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