जीवन शतरंज बिछा
जो दर्द छुपा भीतर
खुद हमने गढ़ा जिसको,
नाजों से पाला है
स्वयं बड़ा किया उसको !
हमने ही माँगा है
ताकत यह हमारी है,
यदि मुक्त हुआ चाहो
मर्जी यह हमारी है !
हम ही कर्ता-धर्ता
हमने यही भाग्य रचा,
अनजाने में दिल पर
दुःख वाली लिख दी ऋचा !
अब हम पर है निर्भर
नया दांव कहाँ खेलें,
जीवन शतरंज बिछा
कैसे नयी चाल चलें !
सुख की यदि चाह हमें
बोली तो लगाएँ अब,
क्या कीमत दे सकते
यह सर तो गवाएँ अब !
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंप्रेरक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (16-10-22} को "नभ है मेघाछन्न" (चर्चा अंक-4583) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंवाह! शानदार।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार नीतीश जी !
हटाएंअवश्य, स्वागत व आभार मर्मज्ञ जी !
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