आतुर है सूरज उगने को
श्वासें महकें अंतर चहके
पल पल नव गीत बजें भीतर,
जीवन जो भी भेंट दे रहा
स्वीकारें उत्साहित होकर !
कभी-कभी ढक गया उजाला
कुछ भी नजर नहीं आता है,
खुशियों के पीछे-पीछे ही
गम का दूत चला आता है !
लेकिन बादल कब तक आखिर
अंशुमान को ढक पाए हैं,
कब तक पर्वत रोक सकेंगे
तूफान से टकराए हैं !
चलते जाना है रस्ते पर,
कंटकमय या पथरीला है,
मंजिल दूर नहीं है साथी
अनथक थोड़ा सा चलना है !
खाली करके मन में भर लें,
नए जोश औ' नए होश को,
उपवन बन जाये मन आंगन,
आतुर है सूरज उगने को !
हर उत्सव संदेशा लाया,
थम कर थोड़ा भीतर झाँकें
दुःख के पीछे छिपा हुआ जो,
सुख के उस दरिया को पाके I
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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