वही मार्ग में संबल बनती
मुख मोड़ा जब-जब प्रकाश से
हर दुःख इक छाया सा मिलता,
परछाई इक सँग हो लेती
तज खुद को जब जग को देखा !
बाधा जो सम्मुख आती है
उसकी भी छाया बनती है,
कभी विषाद, विकार कभी बन
माया बन जो गहराती है !
ज्योति का इक स्रोत है भीतर
हम उससे मुख मोड़े रहते,
पीठ किये इस झिलमिल करते
जग में विचरण करते रहते !
छायाएँ जब मिल आपस में
नित्य नवीन रूप धरती हैं,
कुछ अभिनव कुछ भीत बढ़ातीं
सदा साथ मन बन रहती हैं !
थम जाए यदि पल भर कोई
मुड़ कर देखे स्वयं स्रोत को,
मन खो जाता तत्क्षण जैसे
चकित हुआ सा देखे खुद को !
सदा एक रस सदा साथ है
ज्योति विमल जो दिपदिप करती,
जाने या ना जाने कोई
वही मार्ग में संबल बनती !
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