गुंजार
तू भेज रहा है प्रेम पाती
हर क्षण मेरे प्रभु !
हम पढ़ते ही नहीं
क्योंकि संसार की
उलझनों में खोए हैं
तू जगा रहा है निज गुंजार से
और हम न जाने
किन अंधेरों में सोए हैं
एक क्षण के लिए
तुझसे नयन मिलते हैं तो
हज़ार फूलों की
डालियाँ झर जाती हैं
तेरी याद में
पवन अपने संग
उन अदृश्य फूलों का
पराग ले आती है
शुक्रिया तेरे उस स्पर्श का
जो भर जाता है
मन में पुनः विश्वास
थिर हो जाती है
आती-जाती हर श्वास !
आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार संगीता जी !
हटाएंबेहद सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
हटाएंशुक्रिया तेरे उस स्पर्श का
जवाब देंहटाएंजो भर जाता है
मन में पुनः विश्वास
थिर हो जाती है
आती-जाती हर श्वास !
...जीवन के प्रति आस्था और विश्वास जगाती सुंदर रचना।
परम पिता परमेश्वर को सादर नमन।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंउत्साह बढ़ाती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रूपा जी!
हटाएंअपनी और संसार की उलझनों से तो बाहर आना होता है और ये भी प्रभु की इच्छा के बिना कहाँ होता है ...
जवाब देंहटाएंसही है
हटाएंआदरणीया अनिता जी ! प्रणाम !
जवाब देंहटाएंईश्वर का सन्देश अटल है , वो हर पल हर क्षण हमारे साथ , आगे , पीछे लगा रहता है , माँ की तरह , गुरु की तरह , सखा और सम्बन्धी की तरह
सदा की तरह एक और सार्थक सृजन के लिए
अभिनन्दन !
जय भारत ! जय भारती !
स्वागत व आभार तरुण जी, शुभकामनाएँ!
हटाएंतू जगा रहा है निज गुंजार से
जवाब देंहटाएंऔर हम न जाने
किन अंधेरों में सोए हैं
सही कहा हम अँधेरों में सोये हैं। उसकी गुंजार को अनसुना किए हुए।
लाजवाब सृजन।
स्वागत व आभार सुधा जी!
हटाएंसुंदर शब्दों से रचा गया पवित्र भाव।
जवाब देंहटाएंअध्यात्मिक भावों को रचने में.आपका जवाब नहीं।
सादर।
स्वागत व आभार श्वेता जी, शुभकामनाएँ!
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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