रविवार, जनवरी 29

गुंजार

 गुंजार 


तू भेज रहा है प्रेम पाती 

हर क्षण  मेरे प्रभु !

हम पढ़ते ही नहीं 

क्योंकि संसार की

उलझनों में खोए हैं 

तू जगा रहा है निज गुंजार से 

और हम न जाने

किन अंधेरों में सोए हैं 

एक क्षण के लिए

तुझसे नयन मिलते हैं तो 

हज़ार फूलों की

डालियाँ झर जाती हैं 

तेरी याद में 

पवन अपने संग 

उन अदृश्य फूलों का

पराग ले आती है 

शुक्रिया तेरे उस स्पर्श का 

जो भर जाता है

मन में पुनः विश्वास 

थिर हो जाती है

आती-जाती हर श्वास ! 


18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. शुक्रिया तेरे उस स्पर्श का
    जो भर जाता है
    मन में पुनः विश्वास
    थिर हो जाती है
    आती-जाती हर श्वास !
    ...जीवन के प्रति आस्था और विश्वास जगाती सुंदर रचना।
    परम पिता परमेश्वर को सादर नमन।

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  3. उत्साह बढ़ाती बेहतरीन रचना।

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  4. अपनी और संसार की उलझनों से तो बाहर आना होता है और ये भी प्रभु की इच्छा के बिना कहाँ होता है ...

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  5. आदरणीया अनिता जी ! प्रणाम !
    ईश्वर का सन्देश अटल है , वो हर पल हर क्षण हमारे साथ , आगे , पीछे लगा रहता है , माँ की तरह , गुरु की तरह , सखा और सम्बन्धी की तरह
    सदा की तरह एक और सार्थक सृजन के लिए
    अभिनन्दन !
    जय भारत ! जय भारती !

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  6. तू जगा रहा है निज गुंजार से

    और हम न जाने

    किन अंधेरों में सोए हैं
    सही कहा हम अँधेरों में सोये हैं। उसकी गुंजार को अनसुना किए हुए।
    लाजवाब सृजन।

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  7. सुंदर शब्दों से रचा गया पवित्र भाव।
    अध्यात्मिक भावों को रचने में.आपका जवाब नहीं।
    सादर।

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