अमिलन
लाख मिलाएँ
शक्कर और रेत
जैसे नहीं मिलते
आत्मा और देह वैसे ही हैं
अंतत: शक्कर भी
परमाणुओं से बनी है
रेत की तरह
देह भी बनी है
उसी तत्व से जिससे
आत्मा गढ़ी है
स्वयं भू ! चिन्मय !
और कोई चुनाव कर सकता है
सदा ही
जो स्थूल है
जिसे देखा, सुना, सूंघा जा सकता है
दूजी वायवीय जिसमें डूबकर
वही हुआ जा सकता है
एक में खुद पर चार चाँद
लगाए जा सकते हैं
एक में खुद को मिटाया जाता है
लगाओ लाख तमग़े
मृत्यु का एक झटका
सब छीन लेता है
मिटकर जो मिलता है
वह रहता है मृत्यु के पार भी
इसीलिए वेद गाते हैं
तुम हो वही !
मृत्यु का एक झटका
जवाब देंहटाएंसब छीन लेता है
मिटकर जो मिलता है
वह रहता है मृत्यु के पार भी
इसीलिए वेद गाते हैं
तुम हो वही !
बहुत सुंदर रचना,
स्वागत व आभार मधुलिका जी!
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