गणपति हैं आधार जगत के
चले रौंदते हर बाधा को
गणपति अनुपम ज्ञान प्रदाता,
पावन करते सारे जग को
रस बिखराते हैं मुदिता का !
माँ की तन-माटी से उपजे
मानो गुरुत्व शक्ति भूमि की,
गणनायक नित जुड़े धरा से
जिस कारण धुरी पर टिकी हुई !
वचन दिया जो गौरी माँ को
शीश कटाया उसकी खातिर,
अहंकार तज शिव को जाना
बुद्धि हुई सुबुद्धि बन जाहिर !
मूलाधार में छिपे हुए हैं
इंद्रियों को पोषित करते,
खो जाते मन की हलचल में
दिशा ज्ञान मानव को देते !
अष्ट विनायक आनंदमय हैं
तीनों कालों के वह ज्ञाता,
निर्विकल्प, अलख निरंजन
कौतुक से परिपूर्ण विधाता !
ऐसा ही प्रयास हो अपना
श्री गणेश जीवन में भर लें,
वाणी शुद्ध, सरल, मीठी हो
रुचि हर एक सुरुचि में बदले !
यदि छल-छिद्र नहीं हों मन में
मोह-मान के पार हुआ हो,
उसी ह्रदय में डालें डेरा
हर संकट में धीर खड़ा जो !
बहिर्मुखी जब अंतर्मन है
भय से नित्य काँपता रहता,
बाहर शक्ति बिखेरे पल-पल
मन में उतना बल घट जाता !
ह्रदय केंद्रित, सहज शांत मन
आत्मस्वरूप गणपति प्रकटते,
जिनसे जग सारा प्रकट हुआ
जो सबके रक्षक बने हुए !
उर में प्रेम, भाव में शुचिता
तपस पूर्ण हो जीवन सबका,
एक तत्त्व है सबके भीतर
भेदभाव मिट जाये मन का !
शक्ति जगे उनके अनुग्रह से
अध्यात्म का बढ़े ख़ज़ाना,
सत्व और पवित्रता जागे
बाँधें बंधन पावनता का !
रोग-विषाद न हों जीवन में
संबंधों में आये गरिमा,
धरती के प्रति पूज्य भाव हो
अष्टविनायक की हो महिमा !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 09 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
हटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना मैंने
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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