बुधवार, सितंबर 25

मिलन धरा का आज गगन से

मिलन धरा का आज गगन से



काले कजरारे मेघों का 

गर्जन-तर्जन सुन मन डोले,  

छम-छम बरसा नीर गगन से 

मलय पवन के सरस झकोले !


चहुँ दिशा से जलद घिर आये 

कितने शुभ संदेश छिपाए, 

आँखों में उतरे धीरे से 

कह डाला सब फिर बह जायें !


उड़ते पत्ते, पवन सुवासित 

धरती को छू-छू के आये, 

माटी की सुगंध लिए साथ 

हर पादप शाखा सहलायें !


ऊँचे, लंबे तने वृक्ष भी 

झूमें, काँपें, बिखरे पत्ते, 

छुवन नीर  की पाकर प्रमुदित 

मिलन धरा का आज गगन से !


ऊपरे नीचे जल ही जल है  

एक हुए धरती आकाश, 

खोयीं सभी दिशाएँ जैसे 

कुहरे में डूबा है प्रकाश !




12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत सुन्दर ! प्रवाहपूर्ण और भावपूर्ण रचना.

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  3. बरखा और प्रकृति के परिवर्तन को बाखूबी शब्द दे दिए ... ...

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