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सोमवार, अक्टूबर 23

शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई



  शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई 



खुद से खुद की जब पहचान हुई

ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई 


जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से 

गहरी हरेक से जान-पहचान हुई 


तर था दामन अश्रुओं से जिनका 

मोहक अदा सहज मुस्कान हुई 


दिलोजां लुटाते हैं अब जमाने पर

  शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई 


फासले ही हर दर्द का सबब बनते 

मिटी दूरी सुलह सबके दरम्यान हुई 

रविवार, मई 24

ईद मुबारक

ईद मुबारक 


लो फिर आ गयी ईद 
दिखा चांद... मुस्काया अंबर 
दिलों में मचलने लगे कितने ही मंजर 
उन हवाओं के झूले में झूलने लगा मन 
जो लिए आती थीं रमजान के बाद 
ईद मिलन की खुशबुएँ अपने साथ 
पहली अजान पर ही उठ जाना बिस्तर से 
सफेद झक्क कुर्ते में छोटे भाई का सुबह-सुबह सजना 
पकड़ कर उंगली भाईजान की, इबादत को निकल पड़ना 
लहंगों-शरारों को तह देकर अलमारी में सजाना 
वह गले मिलना और दुआ के लिए हाथ बढ़ाना 
वह ईदी देना छोटों को और बड़ों से पाना 
देकर जकात कुबूल करवाना खुदा से रोजा
‘ईद मुबारक’ कह कर हरेक से दुआएं बटोरना !
गाढ़े दूध से सेवइयां बनाकर मेवों से सजाना 
मीठी हो सबकी ईद यह अल्लाह से मनाना !

बुधवार, दिसंबर 10

जिन्दगी


जिन्दगी

खुद से खुद की पहचान हो गयी
जिन्दगी सुबह की अजान हो गयी

जिनको पड़ोसियों से भी गुरेज हुआ करता था
सारे जहान से जान-पहचान हो गयी

आंसुओं से भीगा रहता था दामन
हर अदा अब उनकी मुस्कान हो गयी

दिलोजां लुटे जाते हैं जमाने पर
दिल से हर शिकायत अनजान हो गयी

फासले खुद से थे हर दर्द का सबब
सुलह खुदबखुद सबके दरम्यान हो गयी