शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई
खुद से खुद की जब पहचान हुई
ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई
जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से
गहरी हरेक से जान-पहचान हुई
तर था दामन अश्रुओं से जिनका
मोहक अदा सहज मुस्कान हुई
दिलोजां लुटाते हैं अब जमाने पर
शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई
फासले ही हर दर्द का सबब बनते
मिटी दूरी सुलह सबके दरम्यान हुई