बुधवार, दिसंबर 10

जिन्दगी


जिन्दगी

खुद से खुद की पहचान हो गयी
जिन्दगी सुबह की अजान हो गयी

जिनको पड़ोसियों से भी गुरेज हुआ करता था
सारे जहान से जान-पहचान हो गयी

आंसुओं से भीगा रहता था दामन
हर अदा अब उनकी मुस्कान हो गयी

दिलोजां लुटे जाते हैं जमाने पर
दिल से हर शिकायत अनजान हो गयी

फासले खुद से थे हर दर्द का सबब
सुलह खुदबखुद सबके दरम्यान हो गयी



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