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शुक्रवार, जून 30

चुने राह के कंटक अनगिन


चुने राह के कंटक अनगिन

वरदानों को शाप मानकर
रहा खोजता द्वार सुखों का,
राह ताकता भटका राही
प्रियतम उर से कहीं निकट था !

तन कंचन सा कोमल अंतर
श्वासों की दी अद्भुत माला,
मेधा, प्रज्ञा शक्ति अनोखी
नयनों में भर दिया उजाला !

उऋण कहाँ तिल भर भी होगा
हर पल भी यदि कोई गाये,
चुने राह के कंटक अनगिन
पाहन पथ के दूर हटाये !

अलबेला मतवाला प्रियतम
सदा उलीचता निज भंडार,
झोली फटी अंजुरी छोटी
कहाँ भरेगा अकोर अपार !

जीवन का उपहार अनोखा
कदर न जाने दीवाना दिल,
हीरे-मोती सी श्वासों में
अश्रु पिरोये अंतर बोझिल ! 



मंगलवार, नवंबर 29

मौन


मौन 

सिमट गयी है कविता 
या छोड़ दिया है खजाना शब्दों का 
उस तट पर 
मंझदार ही मंझदार है अब 
दूसरा तट कहीं नजर नहीं आता 
एक अंतहीन फैलाव है और सन्नाटा 
किन्तु डूबना होगा सागर की अतल गहराई में 
शैवालों  के पार....
जहाँ ढलना है ऊर्जा को सौंदर्य और भावना में 
जीवन की सौगात को यूँ ही नहीं लुटाना है 
कवि के हाथों में जब तक कलम है 
और दिल में शुभकामना है उसे 
वक्त के हर अभिशाप को वरदान में ढालना है !

शनिवार, नवंबर 15

तृषा जगाये हृदय अधीर

तृषा जगाये हृदय अधीर


वरदानों की झड़ी लगी है
देखो टपके मधुरिम ताप,
अनदेखा कोई लिपटा है
घुल जाता हर इक संताप !

गूँज रहे खग स्वर अम्बर में
मदिर गंध ले बहा समीर,
पुलक जगी तृण-तृण में कैसी
तृषा जगाये हृदय अधीर !

मौन हुआ है मेघ खो गया
नील सपाट हुआ नभ सारा,
तुहिन बरसता दोनों बेला
पोषित हर नव पादप होता !

प्रकृति अपने कोष खोलती
हुई खत्म मेघों की पारी,
गंध लुटाने, पुष्प खिलाने
आयी अब वसुधा की बारी !





मंगलवार, सितंबर 14

तुम हर पल हमें बुलाते हो !



तुम हर पल हमें बुलाते हो !

जग से जिस पल खाया धोखा
जब जब दिल ने खायी ठोकर,
तुम ही तो पीड़ा बन मिलते
 झलक सत्य की दिखलाते हो !

जिनको माना हमने अपना
निकले झूठे वे सब सपने,
आधार बनाया था जिनको
छल करना उन्हें सिखाते हो !

पीड़ा भी तुम वरदान तुम्हीं
सब जाल बिछाया है तुमने,
जीवन का भेद खोलने को
वैराग्य पाठ पढ़ाते हो !

भीतर जो दर्द उठा गहरा
वह आशा से ही उपजा था,
टूटे आशा की डोर तभी
तुम ऐसे खेल रचाते हो !

अनिता निहालानी
१४ सितम्बर २०१०