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शुक्रवार, जनवरी 13

कविता

कविता 


कोई एक भाव 

एक शब्द, एक विचार 

उतर आता है न जाने कहाँ से 

और पीछे एक धारा बही आती है 

अक्सर कविता ऐसे ही कही जाती है

अनायास, अप्रयास 

कभी थम जाती है कलम तो जानना कि 

प्रवाह रुक गया है 

कि मार्ग में अवरोध है 

कोई पाहन इच्छाओं का  

या कोई दीवार द्वेष की  

नकार की बाड़ तो नहीं लग गयी 

जिन्हें हटाते ही फिर बहेगी 

कल-कल छल-छल 

काव्य की अजस्र धारा 

निरंतर भिगोती हुई अंतर व बाह्य जगत 

आलोकित होगा 

मन प्राण ही नहीं 

देह का एक-एक कण ! 


मंगलवार, सितंबर 13

पाहन सा दिल बना लिया जो

पाहन सा दिल बना लिया जो 


​​

पल-पल कोई साथ हमारे 

सदा नज़र के आगे रखता, 

आँखें मूँदे हम रहते पर 

निशदिन वह जागा ही रहता !


पाहन सा दिल बना लिया जो 

जब नवनीत बना पिघलेगा,

नयनों से विरह अश्रु बहें 

तत्क्षण आ वह ग्रहण करेगा !


वह दीवाना जग का मालिक 

फिर भी इक-इक के सँग रहता,

केवल भाव प्रेम का बाँधे 

गुण-अवगुण वह कहाँ देखता !


बार-बार भेजे संदेशे 

सुना-अनसुना हम करते हैं, 

युग-युग से जो राह देखता 

चूक-चूक उससे जाते हैं !


वही-वही है जीवन का रस 

प्याले पर प्याला छलकाये, 

जीवन के हर रूप-रंग में 

अपनी ही छवियाँ झलकाए !

 

रविवार, अक्टूबर 24

जब उर अंधकार खलता है

जब उर अंधकार खलता है 


जगमग शिखि समान तब कोई 

सुहृद सहज आकर मिलता है 


 पूर्ण हुआ वह राह दिखाता

नहीं अधूरापन टिकता है 


अविरल बहे काव्य की धारा 

उर मरुथल बन क्यों रहता है 


थिर पाहन सा जब हो मानस 

निर्झर तब उससे बहता है 


प्रीत अगन उसको पिघला दे 

मन जो सघन विरह सहता है 


बुधवार, नवंबर 4

चेतना हर हल बनेगी

चेतना हर हल बनेगी

आग भीतर जो जलाती

पथ प्रदर्शक भी वही है,

अश्रु बनकर जल बहा जो

मनस शोधक भी वही है !

 

शोक पाहन सा चुभे जो 

पाँव की सीढ़ी  बनेगा,

घन विपत्ति का अंधेरा

एक दिन सूरज बनेगा !

 

गर कोई संघर्ष न हो

सुवर्ण न कुंदन बनेगा,

बिना मंथन सिंधु से भी

क्योंकर मधु अमृत झरेगा !

 

तप रही जो आज माटी

नीर कल धारण करेगी,

प्रश्न बनकर जो खड़ी है

चेतना हर हल बनेगी ! 

 

 

 


शुक्रवार, जून 30

चुने राह के कंटक अनगिन


चुने राह के कंटक अनगिन

वरदानों को शाप मानकर
रहा खोजता द्वार सुखों का,
राह ताकता भटका राही
प्रियतम उर से कहीं निकट था !

तन कंचन सा कोमल अंतर
श्वासों की दी अद्भुत माला,
मेधा, प्रज्ञा शक्ति अनोखी
नयनों में भर दिया उजाला !

उऋण कहाँ तिल भर भी होगा
हर पल भी यदि कोई गाये,
चुने राह के कंटक अनगिन
पाहन पथ के दूर हटाये !

अलबेला मतवाला प्रियतम
सदा उलीचता निज भंडार,
झोली फटी अंजुरी छोटी
कहाँ भरेगा अकोर अपार !

जीवन का उपहार अनोखा
कदर न जाने दीवाना दिल,
हीरे-मोती सी श्वासों में
अश्रु पिरोये अंतर बोझिल ! 



गुरुवार, जून 29

खो जाता अनंत आकाश

खो जाता अनंत आकाश

ख्वाब मंजिलों के अंतर में
 पाहन बाँध पगों में चलते,
नील गगन में उड़ना चाहें
बँधी बेड़ियाँ खोल न पाते !

नजरें सदा क्षुद्र पर रहतीं
खो जाता अनंत आकाश,
घोर अँधेरे बसे हृदय में
ढूँढ़ रहा मन प्रखर प्रकाश !

सदा बँधी तट पर लंगर से
बरसों बरस नाव को खेते,
सुदूर कहीं प्रयाण न होता
गीत सदा उस तट के गाते !

छोटे-छोटे सुख की खातिर
कभी परम का दरस न होता,
जिसके कारण ही जीवन है
कण भर उसका परस न होता !