मंगलवार, सितंबर 14

तुम हर पल हमें बुलाते हो !



तुम हर पल हमें बुलाते हो !

जग से जिस पल खाया धोखा
जब जब दिल ने खायी ठोकर,
तुम ही तो पीड़ा बन मिलते
 झलक सत्य की दिखलाते हो !

जिनको माना हमने अपना
निकले झूठे वे सब सपने,
आधार बनाया था जिनको
छल करना उन्हें सिखाते हो !

पीड़ा भी तुम वरदान तुम्हीं
सब जाल बिछाया है तुमने,
जीवन का भेद खोलने को
वैराग्य पाठ पढ़ाते हो !

भीतर जो दर्द उठा गहरा
वह आशा से ही उपजा था,
टूटे आशा की डोर तभी
तुम ऐसे खेल रचाते हो !

अनिता निहालानी
१४ सितम्बर २०१०

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