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मंगलवार, अगस्त 5

उर उसी पी को पुकारे

उर उसी पी को पुकारे


झिलमिलाते से सितारे
झील के जल में निहारें,
रात की निस्तब्धता में
उर उसी पी को पुकारे !

थिर जल में कीट कोई
खलबली मचा गया है,
झूमती सी डाल ऊपर
कोई खग हिला गया है !

दूर कोई दीप जलता
राह देखे जो पथिक की,
कूक जाती पक्षिणी फिर
नींद खुलती बस क्षणिक सी !

स्वप्न ले जगत सारा
रात्रि भ्रम जाल डाले,
कालिमा के आवरण में
कृत्य कितने ही निभा ले !